Thursday, July 8, 2010

न धडकन है टूटी,

न दिल ही है बिछुडा ।

ज़रा सी ये दूरी

थी थोडी ज़रूरी

वरना ये सासें भी

ज़ख्मी हो जातीं ।

तेज़ हो चली थी,

ठहर न रही थी ।

ये थोडा सा संयम

और थोडा सा विरहा ।

मुझे थाम लेगा

मुझे राह देगा ।

राहें थी प्यारी

मुझे यूं लुभाती

भटक मैं चला था

ठहर न रहा था ।

मेरी थी गलती

तो सज़ा मैं ही मांगूँ

कष्ट जो तुम्हे हो

तो क्षमा भी मैं मांगूँ

मुझे माफ करना

खता भूल जाना

जो राहें पुरानी

उसी राह जाना ।

पल जो गुज़ारे

संग संग तुम्हारे

है मेरी अमानत

उसे न भुलाना ।

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